अजीब सी ख्वाइश पलने लगी है,
जुस्तजु ही इक वह है,
जो दीवाने दिल को खलने लगी है ..
आज़ाद कर दिया है हमने,
उन मन की तितलियों को,
उड़ा दिया है उन्हें उस अल्हड हवा में..
अलफ़ाज़ जैसे गुम से गए हैं ,
हकीक़ते जैसे थम सी गई हैं ..
हम बेवजह बस चलने लगे हैं ,
ख्वाबो के आशियाने पिरोते इन नैनो में ,
सब धुआं हैं पल का ,
यकीन में ले चले हैं ...
कसक की दस्तक अनसुनी कर दी है..
अब ये खलिश क्या चीज़ है?
हमे क्या मालूम..
रोना हमने बस बंद कर दिया है..
मखमली कडवाहट की चादर में,
सर रख अब हम सोने लगे हैं ..
3 comments:
Shayad kabhi dil ki kasak bhi ek meethi si khushi de jaati hai .. We need pain to move on in life!
And, I love reading Hindi/Urdu on blogs .. It makes me feel so Lakhnavi-ish :D Good job done.
why does it feel the butterfly is still trapped?
nice :)
good to see the ending, it had a taste of positive dreaminess, like a dream you're seeing with waking eyes, reminds me of "Mr. Tambourine Man" of Bob Dylan....
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