वो नजरो से दूर खड़ी है ,
आँखों में सपने बेशुमार लिए पली है ,
उड़ने की इच्छा से विमुख न कर सका कोई उसे |
आज अपने पंख वह आजमाने चली है |
रहती थी कैद एक दुनिया के कोने में ,
लहराती हवा में देखो अब कदम बढाए हैं |
एक झौका था काफी उस हसीं को,
पर्दा चेहरे से हट चेहरा रूबरू हुआ |
शब्नमी निगाहें थी उन् पलकों के नीचे ,
गुलाब की पंखुड़ी से होंठ थे,
अपने काएदे में एक सलाम कर गयी,
जीत ले गयी दिल सबका वो पर्दानशीं ||
2 comments:
It is the same???
Yes it is the same ..
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