रंजिशे पुरानी है हमारी मोहोब्बत से ,
दर्द दिए है हमेशा इस भ्रम ने |
हम पहचान सके थे उससे ,
फिर ये ऐसा रक्तिम लहू बहता है क्यूँ |
स्फटिक था सब निगाहों के दर्पण में ,
फिर भी धोके में जी रहे थे |
सच सामने था हमारे ,
फिर भी इस बिचारे दिल को गम दे रहे थे|
उस धोकेबाज़ी के खेल ने; उससे हरा दिया|
जुदा हुए हमसे वो ,
फिर उन्हें मोहोब्बत का अघाज़ हो आया |
शीशे से चकनाचूर दिल ,
बटोरने चले वो हमारा |
उनकी बाँहों में पूरा होकर,
दम हमने वहीँ तोड् दिया |
6 comments:
Hazaaron qwahishein aisi ke har ek pe dum nikle...
Bahut nilkle mere armaan...phir bhi kum nikle
zindagi itni jaldi nahi theherti, bas yun hi nahi, zindagi.
Nice work.
Cheers,
Blasphemous Aesthete
Words from broken heart...but can u explain the third line did not get it...
keep the poems in hindi...quite appreciating
:)
@Blasphemous Aesthete
Thank you.. :)
@beyond horizon..
please write the lines i didn't get you..then i'll explain :)
Achaa hei...pyar ki alag bhaav ko achchi tarah likha hei :)
@P-Kay
Shukriya :)
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